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जलवायु परिवर्तन के दौरान आम की फसल पर असर पड़ने के बारे में चिंताजनक संकेत आ रहे हैं। इस समस्या को लेकर वैज्ञानिकों की चिंता देखी जा रही है, क्योंकि इसका सीधा प्रभाव हमारे रोजमर्रा के जीवन पर होने वाला है। इस लेख में हम आम की फसल पर जलवायु परिवर्तन के असर को जानेंगे और उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं को समझेंगे।

जलवायु परिवर्तन का असर: आम की फसल को ध्वस्त करने का खतरा

जलवायु परिवर्तन के कारण आम की फसल में गिरावट का खतरा बढ़ गया है। पिछले कुछ सालों में, फरवरी महीने में होने वाले आम के पेड़ों पर फूल आना अभी तक नहीं हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, जिसके कारण फसल के उत्पादन में कमी हो रही है। इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश, बिहार, और पश्चिम बंगाल के आम के उत्पादन पर दिख रहा है।

जलवायु परिवर्तन सिर्फ़ मौसम को नहीं बदल रहा, बल्कि हमारी खेती, सेहत और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर सीधा असर डाल रहा है। बढ़ता तापमान, असमय बारिश, सूखा और बाढ़ जैसी घटनाएँ अब आम होती जा रही हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान किसानों को हो रहा है—फसलें समय पर नहीं पकतीं, पैदावार घटती है और कीट व बीमारियाँ बढ़ जाती हैं।

लंबे समय में यह असर सिर्फ़ खेती तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पानी की कमी, भोजन की गुणवत्ता और हमारी सेहत पर भी भारी पड़ेगा। इसलिए ज़रूरी है कि हम पर्यावरण का ध्यान रखें और ऐसे समाधान अपनाएँ, जिनसे खेती और जीवन दोनों सुरक्षित रह सकें।

मौसम की मार: आम के पेड़ों की बौर गिरावट

आज का किसान सबसे ज़्यादा मौसम की मार झेल रहा है। कभी तेज़ गर्मी और लू, तो कभी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि—इन बदलावों ने खेती को अनिश्चित बना दिया है। खेत में बोई हुई फसल का भविष्य अब पूरी तरह मौसम पर निर्भर हो गया है। असमय बारिश से धान, गेहूँ और सब्ज़ियों की फसलें खराब हो जाती हैं, वहीं सूखा पड़ने पर खेत सूख जाते हैं और पैदावार घट जाती है।

मौसम की इस मार से सिर्फ़ किसान ही नहीं, बल्कि उपभोक्ता भी प्रभावित होते हैं। जब फसल कम होती है तो अनाज, फल और सब्ज़ियों की कीमतें बढ़ जाती हैं और आम जनता की जेब पर बोझ पड़ता है।

लेकिन समाधान भी संभव हैं—जैसे मौसम पूर्वानुमान पर आधारित खेती, सिंचाई के आधुनिक साधन, और मौसम-प्रतिरोधक बीजों का इस्तेमाल। अगर किसान को सही जानकारी और तकनीक मिले, तो मौसम की मार को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

फसल में फूल न काटने पर होगी गिरावट

किसान भाइयों, अगर फसल में समय पर फूल नहीं काटे जाते, तो उत्पादन में बड़ी गिरावट देखने को मिलती है। दरअसल, पौधे पर ज़्यादा फूल टिके रहने से उसकी ऊर्जा बँट जाती है। नतीजा यह होता है कि फल और दाने ठीक से नहीं बन पाते, आकार छोटे रह जाते हैं और कुल पैदावार घट जाती है।

समय पर फूल काटने से पौधे की ताक़त फल और दाने बनने में लगती है। इससे फल अच्छे आकार के, मीठे और गुणवत्तापूर्ण बनते हैं। यही कारण है कि किसान अगर शुरुआत में ही ज़रूरी फूल छाँट दें तो आगे चलकर फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों बेहतर होती हैं।

किसानों को ध्यान देने की जरूरत

आज के बदलते मौसम और खेती की चुनौतियों के बीच किसानों को खास ध्यान देने की ज़रूरत है। सही समय पर सिंचाई, खाद और कीटनाशक का उपयोग, मौसम पूर्वानुमान पर भरोसा, और फसल प्रबंधन की नई तकनीकों को अपनाना अब बेहद ज़रूरी हो गया है। अगर किसान छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देंगे, तो फसल की पैदावार बढ़ेगी, गुणवत्ता सुधरेगी और नुकसान भी कम होगा।

👉 किसान भाइयों, आपकी मेहनत ही देश की ताक़त है। इसलिए हर कदम सोच-समझकर उठाइए और फसल को सुरक्षित बनाइए।

नई नीतियों की आवश्यकता

बदलते मौसम और खेती की चुनौतियों के बीच किसानों के लिए नई नीतियों की आवश्यकता अब पहले से भी ज़्यादा बढ़ गई है। सरकार और कृषि संस्थानों को ऐसे कदम उठाने होंगे, जो किसानों को:

  • मौसम की अनिश्चितताओं से सुरक्षित रखें

  • फसल की पैदावार और गुणवत्ता बढ़ाएँ

  • उचित बीज, उर्वरक और तकनीक उपलब्ध कराएँ

  • आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए बीमा और सब्सिडी प्रदान करें

नई नीतियों से न केवल किसानों की मदद होगी, बल्कि कृषि क्षेत्र और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। किसानों और प्रशासन दोनों के सहयोग से ही खेती को सुरक्षित और लाभकारी बनाया जा सकता है।

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