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धान की पराली जलाना: किसानों की मजबूरी और इसके विकल्प

वर्तमान हालात

सितंबर–अक्टूबर के महीने में धान की कटाई के बाद उत्तर भारत के खेतों में बड़ी मात्रा में धान की पराली, भूसा और धान का डस्ट बचता है। चूँकि किसानों को तुरंत अगली फसल (ज्यादातर गेहूँ) बोनी होती है, इसलिए वे पराली को जलाकर खेत साफ कर देते हैं। यह तरीका तेज़ और सस्ता तो है, लेकिन इसके गंभीर नुकसान भी हैं।

किसान पराली क्यों जलाते हैं?

  • गेहूँ की बुवाई से पहले समय की कमी।

  • पराली को खेत से हटाने या उपयोग करने का सस्ता और आसान विकल्प न होना।

  • मशीनों (हैप्पी सीडर, सुपर SMS, बेलर आदि) की लागत अधिक होना।

  • श्रमिकों की कमी और मैनुअल सफाई में ज़्यादा समय लगना।

पराली जलाने से होने वाले नुकसान

1. पर्यावरण प्रदूषण

  • पराली जलने से धुआँ और धूलकण हवा में मिलकर स्मॉग बनाते हैं।

  • दिल्ली–NCR और आसपास के इलाकों में साँस लेने की समस्या और दृश्यता कम हो जाती है।

2. मिट्टी की गुणवत्ता पर असर

  • पराली जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर) नष्ट हो जाते हैं।

  • मिट्टी की जैविक गुणवत्ता और जीवाणु (माइक्रोब्स) मर जाते हैं।

3. स्वास्थ्य पर असर

  • धुएँ से आँखों में जलन, गले में खराश और फेफड़ों की बीमारियाँ बढ़ती हैं।

  • बच्चे, बुजुर्ग और दमा/अस्थमा के मरीज सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं।

4. जलवायु परिवर्तन में योगदान

  • पराली जलाने से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें (CO₂, मीथेन, N₂O) उत्सर्जित होती हैं।

  • यह गैसें धरती के तापमान को बढ़ाती हैं और जलवायु परिवर्तन की समस्या को तेज़ करती हैं।

पराली जलाने के विकल्प (समाधान)

🌱 1. हैप्पी सीडर (Happy Seeder)
धान की पराली हटाए बिना ही गेहूँ की सीधी बुवाई करने वाली मशीन।

🌱 2. पूसा डिकम्पोजर (Pusa Decomposer)
ICAR-IARI द्वारा विकसित घोल/कैप्सूल, जो पराली को 20–25 दिन में खाद में बदल देता है।

🌱 3. बेलिंग और एक्स-सिचु उपयोग (Baling & Ex-situ use)
पराली को बेल बनाकर चारे, कागज, कार्डबोर्ड, बायोफ्यूल और बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकता है।

🌱 4. मिट्टी में मिलाना (In-situ Incorporation)
रोटावेटर, सुपर SMS जैसी मशीनों से पराली को काटकर मिट्टी में मिलाना। इससे मिट्टी की उर्वरता और जैविक कार्बन बढ़ता है।

🌱 5. अन्य उपयोग

  • मशरूम की खेती

  • पैकेजिंग सामग्री

  • बायोगैस/बायो-CNG संयंत्रों में ईंधन

सरकार और समाज की भूमिका

  • सरकार द्वारा सब्सिडी पर मशीन उपलब्ध कराना।

  • किसानों को जागरूक करना और उन्हें आर्थिक मदद देना।

  • कंपनियों और स्टार्टअप्स द्वारा पराली आधारित प्रोडक्ट्स बनाना।

निष्कर्ष

धान की पराली जलाना किसानों के लिए मजबूरी जैसा लगता है, लेकिन इसके दुष्परिणाम पर्यावरण, स्वास्थ्य और मिट्टी पर बहुत भारी पड़ते हैं। अगर हम समय रहते जागरूक होकर विकल्प अपनाएँ तो यह “कचरा” हमारी खेती और अर्थव्यवस्था के लिए कीमती संसाधन बन सकता है।

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